कविता के विद्यालय में कुछ पल / राजेश चेतन
ज्यों-ज्यों महावीर प्रसाद ‘मधुप’ जी के रचनाकर्म से गुज़रता जाता हूँ, उनके प्रति श्रद्धाभाव में वृद्धि होती जाती है। हर वर्ष उनको पुरानी डायरियां खंगालते हुए पीले पड़ गए सफ्हों पर उनके मोती जैसे अक्षर अनेक अनमोल रचनाओं से साक्षात्कार करा देते हैं। कविता की सादगी और सहजता उसे कितना महान बना सकती है-इसका उदाहरण मधुप जी की लेखनी है।
प्रस्तुत संग्रह ऐसी रचनाओं का संकलन है जिनमें कहीं न कहीं अपनी मातृभूमि और उस मातृभूमि पर जन्मे महापुरुषों को स्पर्श किया गया है। मधुप जी स्वभाव से भारतीय थे। सो उनकी लेखनी में जब भारतीयता उतरती है तो उसमें किसी प्रकार का कृत्रिम प्रयास नज़र नहीं आता।
महात्मा गांधी पर लिखते समय उनके भीतर की यह भारतीयता सहज प्रकट होती है, जवाहरलाल नेहरू और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर लिखी गई उनकी कविता हो या महर्षि दयानन्द पर लिखी गई संस्तुति; रचनाकार ने किसी भी वाद या पंथ की सीमाओं से दूर खड़े होकर अपने रचनाकर्म का निर्वाह किया है। तुलसी, सूर, टैगोर जैसे व्यक्तियों पर उनका लिखना स्वाभाविक ही था, क्योंकि ये सब तो मधुप जी के काव्य-कुल के पूर्वज भी हैं। लेकिन व्यक्ति-विशेष को समर्पित इन सभी रचनाओं की विशेषता यह है कि इनमें कहीं भी रचनाकार वीरगाथाकाल की तर्ज पर चाटुकार होता नहीं दीख पड़ता।
उत्सवों और त्यौहारों पर लिखी गई रचनाओं में भी मधुप जी ने पुरानी लकीर को तोड़कर अपनी नई लकीर खींची है। वे दीपावली और होली जैसे धार्मिक पर्वों पर तो लिखते ही हैं साथ ही स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस सरीखे राष्ट्रीय पर्वों पर भी गर्व करते दिखाई पड़ते हैं।
उधर परमात्मा से संवाद करती उनकी रचनाएँ कोरी भक्ति का ढोंग करने की बजाय तार्किकता के साथ प्रश्न खड़े करने में अधिक व्यस्त दिखाई देती हैं। वे यदि कवि से संवाद करते हैं या युवाओं से दो पल बात करने लगते हैं तो कर्त्तव्य-पथ की ओर इंगित करते दिखाई देते हैं।
कुल मिलाकर मैं व्यक्तिगत रूप से मधुप जी की लेखनी से अभिभूत रहता हूँ। एक रचनाकार के स्तर पर खड़ा हो सोचता हूँ तो इन रचनाओं से गुज़रने का आनंद कई गुना बढ़ जाता है। जब यह विचार आता है कि अमुक रचना को रचनाकार ने किस भावभूमि पर खड़े होकर रचना होगा, या अमुक रचना का विचार कैसे उतरा होगा...तो अधर अनायास ही एक स्मित से अलंकृत हो उठते हैं।
मधुप जी की कविताओं को पढ़ना आज भी मेरे लिए किसी कविता के विद्यालय में कुछ पल बिताने जैसा है। भीतर के पृष्ठों पर इस विशेष अनुभव की शुभकामनाओं के साथ...
-राजेश चेतन
प्रधान (भिवानी परिवार मैत्री संघ)