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कविता कोश मुक्तांगन - मार्च 2018

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कविता कोश के स्वयंसेवकों ने इस वर्ष विश्व पुस्तक मेले में कविता कोश की तरफ़ से एक कैलेण्डर प्रस्तुत किया जिसमें उन्होनें हर महीने को एक लब्ध प्रतिष्ठित कवि के नाम पर अर्पित कर हमारे अंत:करण में उन कवियों को पुनर्जीवित करने का सफल प्रयास किया। कैलेण्डर से प्रभावित व प्रेरित हो, मुक्तांगन ने इस कैलेण्डर में सुसज्जित कवियों को एक बार पुन: उनकी रचनाओं के माध्यम से याद करना चाहा और इस परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए कैलेण्डर पर आधारित एक शृंखला घोषित की।

शृंखला की पहली की प्रथम कड़ी 11 मार्च 2018 को मैथिलीशरण गुप्त जी को याद करते हुए आयोजित की गई। कार्यक्रम का आयोजन उषा फार्म हाउस, बिजवासन में किया गया। कार्यक्रम का संचालन युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता डा. रश्मि भारद्वाज ने किया।

शृंखला शुरु करते समय यह भी ध्यान रखा गया कि न सिर्फ कैलेण्डर में शामिल किए गए कवियों को पुन: स्मरण करते हुए वरिष्ठ विद्वजनों से रचनाओं का पाठ करवाया जाए बल्कि युवा प्रतिभाओं को भी अवसर दिया जाए कि इन कवियों को स्मरणांजलि देने के उपरान्त अपनी रचनाएँ भी सुनाएँ।

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कार्यक्रम की शुरुआत में सर्वप्रथम डा. राकेश कुमार ने मैथिलीशरण गुप्त के व्यक्तित्व और उनकी रचनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होनें बताया कि कैसे सर्वप्रथम उन्होनें अपनी पहली रचना प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती' में भेजी; और अपना नाम उसमें रसिकेन्द्र (ऋषिकेन्द्र) लिख भेजा था। सरस्वती के उस समय के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ब्रज भाषा में लिखी उनकी रचना को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह परिवर्तन का समय है और अब बोलचाल की भाषा का समय है और ऐसी रचनाएँ छपा करेंगीं।

डा. राकेश कुमार ने गुप्त जी याद करते हुए कहा कि उनकी सबसे बड़ी विशेषता रही कि उन्होनें अपनी रचनाओं में उन महिलाओं को स्थान दिया जिनके त्याग को सब अनदेखा करते रहे। लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला, गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा, भीम की प्रेयसी हिडिम्बा -- इन सबको उन्होनें अपनी रचनाओं में स्थान दिया।

समारोह के प्रतिभागी रहे वरिष्ठ रंगकर्मी सुबोध लाल जी, प्रसिद्ध कवि आलोक श्रीवास्तव जी, रेल मंत्रालय से आए हुए श्री संतोष झा, विज्ञान और प्रौद्योगिक विभाग से श्री प्रांजल धर । इसके अलावा नवोदित रचनाकारों ने अपनी रचनाओं से काव्य गोष्ठी को रौशन कर दिया।

आलोक श्रीवास्तव ने जहाँ 'नर हो न निराश करो मन को' के द्वारा मैथिलीशरण जी को याद किया वहीं सुबोध लाल जी ने उनकी रचना 'झंकार' सुनाई । संतोष झा जी ने जहाँ राम पर लिखी गुप्त जी की रचनाओं से उन्हें याद किया वहीं श्री प्रांजल जी ने 'जीवन की जय हो' का पाठ किया।

फिर बारी आई युवा रचनाकारों की। अलीगढ से आईं रेणु मिश्रा ने "यशोधरा" के माध्यम से मैथिलीशरण गुप्त जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। गौरव अदीब ने "दोनों ओर प्रेम पलता है" पाठ कर उन्हें याद किया।

कानपुर से आए हुए वीरु सोनकर ने किसान कविता का पाठ किया और सबसे आखिर में युवा कवयित्री रश्मि दीक्षित ने "तेरे घर के द्वार बहुत हैं" का पाठ किया।

सबसे आखिर में काव्य गोष्ठी को समेटते हुए मंच संचालक की भूमिका का बखूबी निर्वहन करते हुए डा. रश्मि भारद्वाज ने भी अपनी चार पंक्तियाँ सुनाई।

कार्यक्रम के समापन से पहले जब कविता कोश के संस्थापक और कैलेण्डर पर कवियों को सुसज्जित करने के वास्ते धन्यवाद दिया गया तो उन्होनें कहा कि इतने कवियों के बीच में से मात्र बारह कवियों को कैलेण्डर के बारह महीने में स्थान देना काफ़ी चुनौतीपूर्ण दायित्व रहा।

साथ ही सबने महसूस किया कि न जाने कितने दिनों बाद अपने अध्ययन के उपरान्त कवि मैथिलीशरण गुप्त आज पुन: शिद्दत से याद किए गए और आज इस आयोजन के बहाने न जाने कितनों ने 'कविता कोश' पर जाकर मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाओं को एक बारगी पढा तो सही।

--भवतारिणी