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कविता क्या है? / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
भोर में पाखी का कलरव गान
फिर नील गगन में
पंख खोलकर तैरना
लेना ऊँची उड़ान ।
किसलय की नोक पर फिसलती ओस की बूँद
पहाड़ की तलहटी में
झरने का मधुर गान ।
गरम लोहे पर
पसीने से तरबतर
हथौड़ा चलाते मज़दूर की थकान
लहलाती फ़सल के
पकने के इन्तज़ार में
हुक्का गड़गुड़ाता किसान ।
शिशु को चूमती हुई
दुनिया से बेखबर
माँ की हल्की मुस्कान ।
कल लड़ने के बाद
आज फ़िर से मिल-जुलकर
खेलते बच्चे ।
किवाड़ के पल्ले पर कुहुनी टिकाए
पति - प्रतीक्षारत
देहरी पर खड़ी पत्नी ।
खेतों में धमाचौकड़ी मचाता बछड़ा
गली के नुक्क्ड़ पर बिल्ली के साथ
अठखेलियाँ करता पिल्ला
यही तो कविता है ।