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कविता गुण है तनहाई का / कमलकांत सक्सेना

कविता गुण है तनहाई का।
जीवन धन है तनहाई का।
अस्तित्व पूछते हो अपना?
निरा छलावा तनहाई का।

बन्दगी में प्रात मिले या कि सायं हो।
जिन्दगी में धूप मिले या कि छांह हो।
शूल से भरा हो पथ या तम से घिरा
किन्तु मेरा नाम लिखा एक गांव हो॥


कोई ग़म नहीं, न जाने मेरी कैफियत कोई.
ग़म भी ग़म नहीं, न पूछे मेरी खैरियत कोई.
हाँ, मेरी रोशनी से रोशन कल ये होगी जमीं
आज न माने, न माने मेरी हैसियत कोई॥

चढ़ता हुआ सूरज हूँ मैं।
बहता हुआ पानी हूँ मैं।
लोग 'कमल' कहते हैं मुझे
पत्थर की कहानी हूँ मैं॥