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कविता में पत्र डॉ० शर्मा को / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
बाँदा
१३-१०-६५
प्रिय डाक्टर!
पाई चिट्ठी
हुआ प्रसन्न
तुमने तोड़ा मौन
मैंने खाई खीर
स्वाद बन गया
वक्ष तन गया
गया इलाहाबाद
पुस्तक देखी
आँखें चमकीं
बहुत समय पर
मेरी कविता बाहर आई
छपने पर वह और हो गई
सबको भाई
समारोह भी रहा सुहाना
सबने मुझको
मैंने सबको जाना
मन गाता था गाना
मैं पहने था माला
चलता था चौताला
लेख पढ़े लोगों ने डटकर
सबने काव्य सराहा
पंत, महादेवी के भाषण भाव भरे थे
हास हुलास भरे थे
अमरित ने अमरित बरसाया-
अब फिर बाँदा-वही कचहरी
वही वकालत-वही कटाकट
शेष कुशल है
मैं केदार तुम्हारा।
रचनाकाल: १३-१०-१९६५