भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनी लेॅ भाय !
आबेॅ हमरा सें कविता नै होथौं ।
हमरा झुट्ठे प्रेरित करला सें की लाभ ?
देखोॅ ई हमरोॅ घोॅर छेकै-
जहाँ तोरा लाख खोजला पर
मिलथौं एक ठो टुटलोॅ खटिया,
चित्थी-चित्थी होलोॅ बिछौना,
उजड़लोॅ छप्पर, जेकरा मुन्हां सें
सुरजोॅ के बेशरम हुलकबोॅ।

कत्तेॅ देरोॅ सें लिखै लेॅ बैठलोॅ छी
चाहै छी एक टा कोनो कविता लिखौं,
लेकिन मजबूरी छै-
बच्चां सिनी हड़ताली मजूरोॅ नांखीं
हमरा घेरी लेनें छै
आरो खखनै छै
आपनोॅ जरूरत के चीज लेली
चिचियाबै छै, हल्ला करै छै।
हमरोॅ गोस्सा परशुराम नै होय जाय
हमरा तोरोॅ कहलोॅ बात
याद आबै छै, लागै छै-
तोहें कहनें छेल्होॅ दोस्त !
कि कविता अध्ययन, चिन्तन आरो
साधना सें पुश्ट होय छै।
आरो हम्में धरफड़ाय केॅ
निकाली लै छियौं कलम
तेज-तेज लिखै लेली ।
लेकिन तखनिये-
फाटलोॅ- चिटलोॅ नुंगा में
पपड़ियैलोॅ ठोरोॅ पर जी फेरनें
हमरोॅ धरम पतनी आबी जाय छै
कहै छै-
बुतरू सिनी भुखलोॅ छौं,
गहूम नै छौं,
बच्चा सें हमरा कैन्हें नोचबाबै छोॅ ?
हमरोॅ की अपराध
हमरा कैन्हें मारै छोॅ ?
हमरा लेली मरै-जियै वाली के बात सुनी केॅ-
आबेॅ हम्में राशन दुकानी पर एैलोॅ छी
लंबा लाइन लगैनें खाड़ोॅ छै लोग
तभिये मालूम होय छै-
गहंूम नै छै, किरासन तेल खतम छै।

बगलोॅ में खाड़ोॅ किसना गाली बकै छै-
‘‘सारोॅ सभ्भैं दू नम्बर के काम करै छै,
उपरें-उपर बेची लै छै।’’
आरो हमरोॅ मनझमान चेहरा पर
जेठोॅ के पछिया तावोॅ सें भरलोॅ बॉव,
एना केॅ गुजरी जाय छै,
जेना टुटलोॅ ठारोॅ केॅ
थर-थरबैने अन्धड़।
आबेॅ तोंहीं बताबोॅ हमरोॅ दोस्त !
कविता कहाँ सें आबै छै ?
कविता रोटी नै दियेॅ पारेॅ,
रोटियें कविता दै छै !