कविता / मन्त्रेश्वर झा
तहिया कविता
‘देखौंस’ छल
तुकबन्दी छल
प्रतियोगिता छल
अबोध मोनक उड़ान छल निश्छल
कोनो हताशाक परिणाम छल
जिजीविषा छल
अभिव्यक्तिक अभिमान छल
अभियान छल
गीत छल, संगीत छल
विद्यापति कि गोबिन्द दासक
प्रीति छल
अपनाकेँ अलंकृत करबाक
प्रतीति छल
आह, तहिया कते अनावृत
करैत छल कविता
कतेक आह्लाद पसारैत छल।
मुदा आब?
आब कतबो आवृति लगबैत छी
केवल आवृते करैत अछि कविता
पकड़ैत छी ककरो सत्य
ककरो भोगल क्षण
ककरो रूप विदू्रप
अपना सँ जोड़ैत छी
जोड़बाक प्रयास करैत छी
कोनो क्षणक माधुर्य
कोनो शिल्पक चातुर्य
कोनो भ्रम विभ्रमक करैत छी नकल
कतबो टारिकेँ हटबैत छी
कतहुसँ आबिए जाइए
हमर लोखनीक नोक पर।
आ कविता नहि लिखि पबैत छी
अपन झोंक पर।
सभटा प्रतिश्रुति
सभटा अनुभूति
कविता मे गडमड भऽ जाइए
कविजीक संबोधन आब नहि
करैए उद्वेलित
अनायास आयास सँ बिछैत
रहैत छी कविताक तंतु, विम्ब
जस की तस धरि दीन्हीं चदरिया
कोना होयत आब
चादरि मैल भऽ गेल अछि
एतेक उद्वेग सँ विचलित कवि!
तखन छोडू ने कविता
मुदा कविता ने छुटबे करैए
आ ने छोड़बे करैए।