भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवि-कर्म / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वेश्याओं के ऊँचे पलंग हैं, या जली हुई
लकड़ियाँ । कहीं जगह ख़ाली नहीं है गज़
भर, जहाँ बैठ कर लिखी जा सके गीता,
या गीतांजलि। ऊँचे पलंग हैं, या रसोई
घर की जली हुई लकड़ियाँ हैं ।