कवि अब तो युग के जीवन को / बलबीर सिंह 'रंग'
कवि अब तो युग के जीवन को
नूतन गति दे दो!
वही अमर कवि जो कि
समय को चिर नूतन-गति दे दे,
जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्ति के
लिये विमल गति दे दे।
कवि की वाणी का बल पाकर
स्वप्न सत्य हो जाते,
कवि की लोह लेखनी से
इतिहास अमरता पाते।
युग के अन्धे भक्त बनो मत
युग अनुकूल बनो तो,
संघर्षों में विकल विश्व के
मंगल मूल बनो तो।
वर्तमान की ओर देखता
आज भविष्य महान,
क्या जाने किस क्षण हो जाये
नवयुग का निर्माण।
समय स्वयं सब कुछ कर लेगा
तुम अनुमति दे दो,
कवि अब तो युग के जीवन को
नूतन गति दे दो!
जो चालीस करोड़ देवता
युग केभाग्य विधाता,
जिनको भोजन वस्त्र कभी
भरपूर नहीं मिल पाता।
बैलों की घंटियाँ जगाती
जिनको सदा सबेरे,
ऋण, लगान, चन्दे की चिन्ता
रहती जिनको घेरे।
यन्त्रों से जूझा करते जो
बेबस मिल मजदूर,
जिनके अन्तर घाव बन गए
रिस-रिस कर नासूर।
जो श्रम के स्वामी पर मेहनत
करने को लाचार,
वैभव ने जिनके जीवन से
अब तक की खिलबार।
उन भूखे भगवानों को
अब सुख-सम्पति दे दो,
कवि अब तो युग के जीवन को
नूतन गति दे दो!