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कवि का घर / मोनिका कुमार / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

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इन खिड़कियों पर कभी यहाँ साँसें थी,
कुछ पकने की ख़ुशबू और आईने में वही चेहरा था।
अब यह अजायबघर है।
फ़र्श पर उगे फूल-बूटे उखाड़ दिए गए हैं,
सूटकेस ख़ाली कर दिए गए हैं
और कमरों पर लाख चढ़ा दी गई है।
खिड़कियाँ दिन-रात के लिए खुली छोड़ दी गई हैं।
चूहे इस निर्वात घर से दूर रहते हैं।

बिस्तर करीने से सजा है।
पर यहाँ कोई एक रात भी नहीं बसर करता।

उसकी अलमारी, बिस्तर और कुर्सी के बीच -
उसकी अनुपस्थिति का
उसके पैने हाथों के आकार जैसा सफ़ेद रेखाचित्र है।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार