कवि के प्रति / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’
काव्य कौशल की छटा है,धीरता के शब्द हैं
ओजमय वाणी तुम्हारी,वीणा के छंद हैं
शत्रु को तुमने भगाया,एक ही ललकार में
तुमने जगाया है देश-कवि,एक ही हुँकार में
सीमा सजी काश्मीर की,सैनिक खड़े रण बाँकुरे
सुन-सुन तुम्हारे राग मारू, युद्ध से न कदापि मुरे
आ चरण में पाक लौटा,एक ही फुफकार में
तुमने जगाया है देश-कवि,एक ही हुँकार में
भूषण हमारे देश के,तुम वक्त के बलिदान हो
तुम सैन्य सपना से सेज,तुम देश के आव्हान हो
डगमगाया शत्रु का बल,शस्त्र की झनकार में
तुमने जगाया है देश-कवि,एक ही हुँकार में
है चिंता तुम्हे निज देश की,तुम महा गंभीर हो
इतिहास में ठाव नाम उज्वल, तुम सहज ही वीर हो
खुद को निछावर कर दिया है,मातृ-भू के प्यार में
तुमने जगाया है देश-कवि,एक ही हुँकार में
वाणी तुम्हारी कड़कती है,दामिनी सरीखी रोष में
तुम चमकते तेज होकर,काव्य-गाथा जोश में
धार कर दी सैनिको की,जूझती तलवार में
तुमने जगाया है देश-कवि,एक ही हुँकार में