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कवि के साथ-1 / नवनीत पाण्डे

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कवि के साथ बैठा
देखा!
कवि उदास है
विचलित है
आपा-धापी
संवेदनहीन
अखाड़ेबाजों की दुनिया में
उसकी कविता
चारों खाने चित है
वह गढना चाहता है
नए बिम्ब, रूपक
प्रतिमान
नए उनमान
गूंज-अनुगूंज
अपनी कविता में
व्यक्त करना चाहता है
अपने भीतर की
कुलबुलाहट, छटपटाहट को
उसी चरम, रूप में
जिसमें वह है
पर हार जाता है
अभिव्यक्ति के औज़ारों से
दुनियावी बाज़ारों से
इसीलिए
कवि उदास है
विचलित है
सिमटा है
अपने ही भीतर
असहाय
देखते हुए कविता में
कविता से इतर