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कवि रामायण रचेगा / राजेन्द्र गौतम
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आग को देते हवा हो
कौन सा फिर घर बचेगा ?
फूट कर लावा घृणा का
लील लेगा क्या हरापन
फूल जल कर रख होंगे
और होंगे ठूँठ उपवन
सिन्धु-मन्थन तो किया है
देव-असुरों ने यहाँ फिर
पर नहीं कोई बचा शिव
विष जिसे युग का पचेगा ।
द्वेष की रख कर छुरी
चन्दन-धरा की देह पर तुम
माँगते घायल पड़ी
माँ से वही हक़ नेह पर तुम
तुम महाभारत उतारो
लाख चाहे इस जमीं पर
पर कवि तो आँसुओं से
करुण रामायण रचेगा ।