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कवि / राजेश अरोड़ा

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सूरज! बहुत आग है तुम में
और मैं नहीं चाहता सूरज होना
क्योंकि झुलस जायेंगे
पंछियों के पंख
मैं बादल ही भला
भिगो दूँ सब को बाहर भीतर