भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कसे रहो पतवार निरंतर / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
कसे रहो पतवार निरंतर देखो छूट न जाये।
कश्ती से साहिल का रिश्ता देखो टूट न जाये।
माना साहिल तक जाने का
रस्ता बहुत कठिन है।
मगर ठान लो कुछ करने की
तो सब कुछ मुमकिन है।
संकल्पों का कोई भी घट देखो फूट न जाये।
कश्ती से साहिल का रिश्ता देखो टूट न जाये।
लाख भँवर में कश्ती हो पर
धैर्य न छोड़ो अपना।
हर पल साहिल से मिलने का
आँखों में हो सपना।
कभी तुम्हारा सपना तुमसे देखो रूठ न जाये।
कश्ती से साहिल का रिश्ता देखो टूट न जाये।
साहस हो तो बाधाओं से
बिलकुल नहीं डरेगी।
दरिया तो दरिया है, कश्ती
सागर पार करेगी।
बस कोई साहस की दौलत देखो लूट न जाये।
कश्ती से साहिल का रिश्ता देखो टूट न जाये।