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कस्तूरी / प्रणय प्रियंवद
Kavita Kosh से
ढूंढता हूं तुम्हें
हवा में
जल में रोशनी की चांद में
तुम्हें ढूंढता हूं
रातरानी और रजनीगंधा की गंध में
रंगों में
अभी-अभी उगी पत्तियों में
खिड़कियों से पूछता हूं
किताबों से पूछता हूं
तुम्हारे बारे में
और फिर
महसूसता हूं अपने भीतर तुम्हें
अपनी सांसों में
धमनियों में
आंसुओं की हर बूंद में
तुम होती हो मेरे साथ
डरता हूं
मेरी नाभि न ले जाए कोई चुराकर…