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कहता है / प्रकाश मनु

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कहता है कि औरत की देह है उसका खजाना उसका तिलिस्म
वह खोल-खोलकर दिखाए तो अपने बाप का क्या जाता है
और औरत की नंगी पीठ पर दूर तक फेरता हुआ हाथ
उसकी बगल में ऐन बिजूका सा खड़ा हो जाता है ...
ऐन शान से फोटो खिंचाने की मुद्रा में।

कहता है कि नया जमाना है और नए
जमाने में चलता है जो भी जरा ठसके से चला दो
कि कहीं कुछ भी पवित्र नहीं इस जमाने में
सब कुछ जो भी है आपकी आंख के सामने
बुरी तरह रौंद डाला जाएगा...
चाहे वह स्त्री हो, कला हो, संस्कृति हो या साहित्य...
ऐसे ...!!

अचानक पैर उठाकर जूता
चमकाता है वह-
बलात्कारी मुद्रा में।
ऐन अपनी आंख के सामने...
और नाचते हुए जूते के साथ-साथ खुद नाचने लगता है
नए जमाने की नई हवा में ...
हर पवित्र चीज पर जूते की गर्द झाड़ता हुआ।

कहता है कि जाहिलों। साहित्य की जगह जूता। संगीत
की जगह जूता। कला की जगह जूता । संस्कृति
की जगह जूता रखो तो इस
नई बनती हुई दुनिया की मर्म

ज्यादा अच्छी तरह समझ में आएगा
-कहते-कहते वह अचानक चेहरा बदलने
लगता है
और देखते-देखते लिबर्टी के एक बड़े आदमकद
जूते में बदल जाता है...!!!

कहता है कि इक्कीसवी सदी में कोई चीज
सुरक्षित नहीं, सब कुछ है परिवर्तनीय
बस समझो कि हवा हवाई है दुनिया...
इसलिए अभी तो मैं जूता बना हूं अभी देखते
ही देखते
क्या से क्या हो जाऊंगा
न आपको पता है
और न मैं जानता हूं...!

और सचमुचं..। अभी तक जहां जूता था
आप देखते हैं
वहां किंगरियोंदार जाली से नए जमाने की
फिरंगी हवा सांय-सांय

बह रही है

और हमारे समय का धांसू प्रवक्ता
उसे इस कदर पी चुका था
कि हमारे देखते देखते
एक जरूरत से ज्यादा फूले हुए कुप्पा
बैलून में बदल चुका था...
जिसे अंततः फटना ही था !