भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहते थे आदमी को सताया न जाएगा / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहते थे आदमी को सताया न जाएगा
निर्दोष को पकड़ के यूँ लाया न जाएगा।

भूखे तमाम लोग हैं बैठे यहाँ वहाँ
 ऐसे में यार मुझसे भी खाया न जाएगा।

सागर भले नदी की मुहब्बत भुला दे, पर
प्रीतम का प्यार मुझसे भुलाया न जाएगा।

सम्पर्क टूटने से न संकल्प टूटता
इसरो के मान को भी घटाया न जाएगा।

बलिदान के लिए ही तो बकरे खरीदते
खस्सी बिना तो पर्व मनाया न जाएगा।

इस बार आ सकूँगा नहीं माँ ही रोकती
बीमार माँ को छोड़ के जाया न जाएगा।