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कहमा रे हँसा आवल, कहमा समाएल हो राम / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कहमा रे हँसा<ref>हंस, जीव</ref> आवल<ref>आया</ref> कहमा समाएल<ref>समा गया, प्रवेश कर गया, घुस गया</ref> हो राम।
कउन गढ़ कयलक<ref>किया</ref> मोकाम<ref>पड़ाव, ठहराव, विश्राम-स्थल</ref> कहाँ रे लौटि जायत हो राम॥1॥
निरगुन से हंसा आवल, सगुना समायल हो राम।
बिसरी गयल हरिनाम, माया में लपटायल हो राम॥2॥
नया रे गवनमा के आवल, पनियाँ के<ref>पानी भरने के लिए</ref> भेजल हो राम।
देखल कुइयाँ के रीत, से जिया घबड़ायल हो राम॥3॥
डोलवो<ref>डोल, पानी भरने का लोहे का एक बरतन</ref> न डोलहइ<ref>डोलता है</ref> इनरवा<ref>कुएँ में</ref> रसरिया<ref>रस्सी</ref> त छूटल हो राम।
देखल कुइयाँ के रीत, हिरा मोरा काँपे हो राम॥4॥
सास ननद मोरा बयरिन<ref>बैरिन</ref> गगरी फूटल हो राम।
का लेके<ref>क्या लेकर</ref> होयबइ<ref>होऊँगी</ref> हजूर<ref>सम्मुख</ref> से आजु नेह टूटल हो राम॥5॥
सास मोरा सुतल अटरिया, ननद कोठा ऊपर हो राम।
सामी मोरा सुतलन अगमपुर, कइसे के जगायब<ref>जगाऊँगी</ref> हो राम॥6॥
लटवा<ref>लटें</ref> धुनिए धुनि<ref>धुन-धुनकर</ref> माता रोवइ।
पटिया<ref>खाट के ढाँचे के दाहिने-बायें लगाई जाने वाली वे लकड़ियाँ जिसके मेल से रस्सी की बुनाई होती है</ref> लगल बहिनी हो राम।
बहियाँ पंकड़ि मइया रोवइ, से आज नेह टूटल हो राम॥7॥
चारि जना खाट उठावल, मुरघट<ref>श्मशानघाट। मुरदघट्टी</ref> पहुँचावल हो राम।
जँगला<ref>जंगल</ref> से लकड़ी मँगावल, काया के छिपावल हो राम॥8॥
फिन<ref>फिर</ref> नहीं अयबइ<ref>आऊँगा</ref> इ नगरिया।
मनुस चोला न पायम<ref>पाऊँगा</ref> हो राम॥9॥

शब्दार्थ
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