कहवाँ के कोहबर लाल से गुलाब हे।
कहवाँ के कोहबर पान से छवावल हे॥1॥
अँगना के कोहबर लाल हे गुलाब हे।
भीतर के कोहबर पान से छवावल हे॥2॥
सेहु पइसी<ref>उसमें प्रवेश करके</ref> सुतलन दुलरइते बाबू राजा हे।
जबरे भइ सुतलन पंडितवा केरा धिया हे॥3॥
ओते<ref>अलक हटकर, उधर ही</ref> सुतूँ, ओते सुतूँ, ससुर जी के बेटवा हे।
नइहर के चुनरी मइल<ref>मैली</ref> जनु होवइ हे॥4॥
एतना बचन जब सुनलन दुलरइते बाबू राजा हे।
भीतर के सेजिया बाहर कर देलन हे॥5॥
गरजे लगल बादल बरसे लगल बुंद हे।
देहरी लगल दुलहा रोदना पसारे<ref>राने लगा</ref> हे॥6॥
खोलु धनि, खोलु धनि, सोबरन केवाड़ हे।
आजु के रतिया सुहावन करि देहु हे॥7॥
कइसे हम खोलूँ परभु, सोबरन केवड़िया हे।
हमरा बाबू से दहेज मत लिहऽ<ref>लेना</ref> हे।
हमरी अम्माँ से जयतुक<ref>सलामी, प्रणाम करने तथा किसी विधि को संपन्न करने के लिए द्रव्यादि लेना।</ref> मत लिहऽ हे॥8॥
तोहरो बाबू से दहेज नहीं लेबो<ref>लूँगा</ref> हे।
तोहरी अम्माँ से जयतुक नहीं लेबो हे॥9॥
हमरी अम्माँ से जबाव मति करिहऽ<ref>जबाब करना = यह मुहावरा यहाँ सवाल-जवाब के अर्थ में प्रयुक्त है। एक मालवी लोकगीत में भी इसी अर्थ में ‘जबाब करना’ मुहावरे का व्यवहार किया गया है।</ref> हे।
तोहरी अम्माँ से जबाब मति करबो हे॥10॥
लाख अरजिया जी परभु, लेखो<ref>लेखा-जोखा, हिसाब</ref> मत लिहऽ हे।
अरथ भंडार<ref>द्रव्य का भांडार, द्रव्य और भांडार</ref> परभु, सौंपि हमरा दिहऽ हे॥11॥