कहाँ गये सारे लोग / नेमिचन्द्र जैन
कहाँ गये सारे लोग
कहाँ गये सारे लोग जो यहाँ थे,
या कहा गया था कि यहाँ होंगे
लग रहा था बहुत शोर है,
एक साथ कई तरह की आवाजें
उभरती थीं बार-बार
बन्द बड़े कमरे में
पुराने एयर-कण्डीशनर की सीलन-भरी खड़खड़ाहट
सामने छोटे-मंच पर
आत्मविश्वास से अपनी-अपनी बातें सुनाते हुए
बड़े जिम्मेदार लोग
या उनसे भी ज्यादा जिम्मेदार
सुनने की कोशिश में एक साथ बोलते हुए
सवाल पूछते हुए
सामनेवालों से
आपस में
नारियल की शक्ल का जूड़ा बनाये
और मोटा-मोटा काजल आँजे
एक महिला का
रह-रह कर
किसी अपरिचित राग का आलाप-
लग रहा था बहुत शोर है,बहुत आवाजें हैं-
पर फिर क्या हुआ
कहाँ सब गायब हो गया
क्या कोई तार प्लग से निकल गया है
बेमालूम
कि कोई आवाज नहीं आती
कहीं कोई हिलता-डोलता नही
कुछ दिखाई भी नहीं पड़ता
कहीं ऐसा तो नहीं कि
बड़ा कमरा खाली है
हर चीज दूसरी से अलग हुई
थमी, बेजान है
या कि इतनी सारी आवाजों के
लोगों के बीच
मैं ही कहीं खो गया
अकेला हो गया।