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कहाँ पराए, सब अपने हैं / रेशमा हिंगोरानी
Kavita Kosh से
सूली पर ले जाने वाले
और नहीं मेरे अपने थे,
मेरे प्रियतम के खूनी भी
और नहीं उसके अपने थे,
हमने तो बस प्यार किया था
कब जाती पर वार किया था,
पँचायत को बात न भाई
पल में निर्णय दिया सुनाई,
"इन दोनों को मरना होगा
प्रायश्चित तो करना होगा"
लोग सितारों तक जा पहुँचें
चाँद को छूकर लौट भी आएँ,
पर नक्षत्र, हस्त रेखाएँ
अपनी किस्मत इन्हीं के हाथों...
रोज़ मरेंगे, रोज़ जिएँगे
रोज़ कटेंगे, रोज़ लड़ेंगे,
किसने माना एक हैं हम सब
किसने जाना एक हैं हम सब
हमको तोड़ने वाले भी तो
गैर कहाँ - ये सब अपने हैं,
मज़हब, जाती बाँट न पाए
अजब अजब देखे सपने हैं...