भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ से ऐलै उड़ि भँबरबा / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में नायिका अपने पति से अधिक देवर को महत्त्व देती है। देवर एक सुंदर युवक है, जो इत्र से सुवासित वस्त्र धारण किये हुए है तथा जिसके बालों में सुगंधित तेल लगा हुआ है। वह देवर का विशेष आदर तो करती ही है, साथ ही उससे मजाक करने से भी नहीं चूकती। वह देवर को विदाई के समय ननद को उपहार में देने को कहती है।

कहाँ सेॅ ऐलै<ref>आया</ref> उड़ि भँबरबा, कहाँ सेॅ ऐलै देबरा<ref>देवर; पति का छोटा भाई</ref>।
चुय छै<ref>चूता है</ref> रे अतरबा<ref>इत्र</ref>, देबरा तोरे जुलफी ना॥1॥
उतरें सेॅ ऐलै उड़ि भँबरबा, दखिने सेॅ ऐलै देबरा।
देबरा चुयै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥2॥
किय बैठे<ref>बैठने के लिए</ref> के देबै उड़ि भँबरबा, किए बैठे के देबै देबरा।
देबरा चुए छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥3॥
खटिया बैठे के देबै उड़ि भँबरबा, पटिया बैठे के देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥4॥
कथिक<ref>किस चीज का</ref> जल देबै उड़ि भँबरबा, कथिक जल देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥5॥
लोटाक<ref>लोटे का</ref> जल देबै उड़ि भँबरबा, झारिक<ref>झारी का; पानी परोसने तथा हाथ-मुँह धुलवाने के काम में आने वाला टोंटीदार बरतन</ref> जल देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥6॥
किय भोजन देबै उड़ि भँबरबा, किय भोजन देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥7॥
दही चूरा खैक<ref>खाने के लिए</ref> देबै उड़ि भँबरबा, खूबा<ref>खोया; औंटकर लुगदी-सा बनाया हुआ दूध</ref> औंटल दूध देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥8॥
किय मुखसुधि<ref>खाने के बाद मुख शुद्ध करने के लिए खाने वाली चीज</ref> देबै उड़ि भँबरबा, किय मुखसुधि देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥9॥
गुआ<ref>कसैली; सुपारी</ref> मुखसुधि देबै उड़ि भँबरबा, साँची<ref>एक विशेष प्रकार का पान</ref> पान देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥10॥
किय बिदागी<ref>विदाई</ref> देबै उड़ि भँबरबा, किय, किय बिदागी देबै देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥11॥
धोती अँगोछा देबै उड़ि भँबरबा, ननदी बिदागी देबै देबरा।
देबरा चुबै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥12॥
झकि तोपी<ref>उदास होकर; ढककर</ref> जैते उड़ि भँबरबा, ताली ठोकी जैते देबरा।
देबरा चुवै छै हो अतरबा, देबरा तोरे जुलफी ना॥13॥

शब्दार्थ
<references/>