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दाएँ पहाड़ पर मिट्टी है
बाएँ ऊँचे-ऊँचे पेड़
आगे गहरी खाई
आँखें जब ऊपर करता हूँ
बादल झुक कर पर्वत पर
अपने नाज़ुक होंठों से
लम्स[1] का नज़राना[2] टपकाते हैं
एक कहानी पूरी हो जाती है