भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहिया ऐतै दिन बस्ती केॅ / धनन्जय मिश्र
Kavita Kosh से
कहिया ऐतै दिन बस्ती केॅ
खेल कूद के सब मस्ती केॅ।
सभ्भे सुख सेॅ जीयोॅ नै कि
मौज हुऐ बस कुछ हस्ती केॅ।
चोरी डाका बुरी बात छै
पकड़ैभोॅ इक दिन ऊ गलती केॅ।
बीस टका में बालू सेर भर
गेलै दिन सब ऊ सस्ती केॅ।
सब यात्री में मार चढ़ै लेॅ
छेद नै देखै कोय किस्ती केॅ।
कहे ‘धनंजय’ सोचोॅ इक दिन
जैतोॅ लाली ऊ मस्ती केॅ।