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कहिये ज़नाब आप किधर के कहाँ के हैं / मोहम्मद इरशाद

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कहिये ज़नाब आप किधर के कहाँ के हैं
मेरी तरह हैं बेमकाँ या कि मकाँ के हैं

आओ गले मिले हम भुला के सब रंजिशें
मेहमान दो घड़ी के हम इस जहाँ के हैं

मुझपे तेरा इल्ज़ाम लगाना तो ठीक है
तेरे नहीं ये लफ्ज किसी की ज़बाँ के हैं

इंसानी शक्ल में है शैतान सिफत लोग
नहीं कहीं के और ये तो इस जहाँ के हैं

‘इरशाद’ हम दोनों में कैसी ये दूरियाँ
तुम भी वहाँ के और हम भी वहाँ के हैं