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कहि केॅ/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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हम्में जैवै ऐन्होॅ गजल कहि केॅ
लोग आह भरतै हाय विमल कहि केॅ ।

सच कहै में नै होय छै कोनाॅे पर्दा
सच होतै छै तिक्खोॅ गेलै बाबा कहि केॅ ।

केनां कहबौं कि वतन पर हमरो हक छै
हक वाला मरै छै घोर मट्ठा मही केॅ ।

उम्मीद छै जेकरा सें ऊ उड़ै छै अकाशोॅ में
निर्दोष जन जीयोॅ दरदे दर्द सही केॅ ।

शीर्ष पर छै बैठलोॅ ऊ निठुर नेठुवाय केॅ
तोंय मरोॅ विमल कविता कहि-कहि केॅ ।

देश मांटी सें तोरा जों सच में बहुते प्रेम छौं
कुहरोॅ कवि खानदान अकारथ रहि-रहि केॅ ।