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कहीं किरदार का झगड़ा कहीं दस्तार का झगड़ा / ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

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कहीं किरदार का झगड़ा कहीं दस्तार का झगड़ा,
कहीं सब खून के प्यासे कहीं है प्यार का झगड़ा।

कोई बेबाक बोले जा रहा सब कुछ बिना सोचे,
कोई खामोशियों से लड़ रहा इज़हार का झगड़ा।

यहाँ बे-लौस सूरज सा चमकता है अँधेरा भी,
यहाँ तो मुद्दतों से चल रहा प्रतिकार का झगड़ा।

लड़ो उससे कि जो पहचान सब की खा रहा दिन-दिन,
ये झगड़ा सब का है झगड़ा नहीं दो चार का झगड़ा।

इधर है अंधी गहराई उधर कातिल ऊँचाई है,
मुसलसल है इन्हीं मगरूरों से अधिकार का झगड़ा।

सभी को एक ही चिंता है मंजिल तक पहुँचने की,
जहाँ देखो वहीं पर चल रहा रफ्तार का झगड़ा।