कहीं चटका न दे सब अस्थियाँ यह पाश पर्वत की / पवनेन्द्र पवन
खनन का वासुकि बैठा लपेटा मार कर इसको
कहीं चटका न दे सब अस्थियाँ यह पाश पर्वत की
लगा कर माँ के फेरे करते `घोघोमाणी'<ref> पहाड़ में बच्चों का खेल जिसमें किसी के इर्दगिर्द चक्कर लगाते हैं</ref> बचपन में
हैँ कर लीं परिक्रमाएँ हमने तो कैलाश पर्वत की
नहीं हैं पेड़ पत्थर जीव जो बहते हैं दरिया में
बहाई जा रही है टुकड़ा-टुकड़ा लाश पर्वत की
लगाकर दाँव पर जंगल , हवा, जल, पेट की ख़ातिर
ग़रीबी खेलती अब तक रही है ताश पर्वत की
दिखा प्रतिबिंब इसका झील में तो यूँ लगा हमको
हो करता बन्दगी जैसे यहाँ आकाश पर्वत की
महीनों बाद हाज़िर हो रुगण अध्यापिका जैसी
चली जाती है लेकर धूप फिर अवकाश पर्वत की
भड़कते जंगलों लेटे इसको देख लगता है
चिता पर जल रही जैसे ‘पवन’ हो लाश पर्वत की