आंख उठाये
देखता है देवला
कभी आसमान को
और टटोलता है कभी
हरियाली के नाम पर बची
सीवण की आखिरी निशानी ।
कहीं तो बचे जीवन
जो कभी हरा हो
जब बरसे गरज कर
थार में थिरकता पानी ।
आंख उठाये
देखता है देवला
कभी आसमान को
और टटोलता है कभी
हरियाली के नाम पर बची
सीवण की आखिरी निशानी ।
कहीं तो बचे जीवन
जो कभी हरा हो
जब बरसे गरज कर
थार में थिरकता पानी ।