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कह गया घनश्याम हम को भूल जाना / रंजना वर्मा

कह गया घनश्याम हम को भूल जाना ।
पर कहाँ आसान है उस को भुलाना।।

था सदा से ही पराया कृष्ण मेरा
सीख कब पायी उसे अपना बनाना।।

बन गये अक्रूर इतने क्रूर कैसे
कंस के दरबार में उनका ठिकाना।।

देवकी ने जन्म है यद्यपि दिया पर
पालना तो इस यशोदा ने ही जाना।।

कौन सा अधिकार है जागृत हुआ अब
कर रहा जो कृष्ण को मुझ से बेगाना।।

विवश था वात्सल्य सारा देवकी का
प्राण कब आया उसे सुत का बचाना।।

फेर कर मुँह क्यों गया घनश्याम मेरा
भूल बैठा गांव का अपना घराना।।