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कह रहा हूँ हाल दिल का / सुरजीत मान जलईया सिंह

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कह रहा हूँ हाल दिल का
अब जरा स्वीकार कर लो
एक पल के ही लिये कर लो
 मगर तुम प्यार कर लो
साँसों में तुम बस गयी हो
 वक्त में ठहराव सा है
भोर की पहली किरण हो
 रात से टकराव सा है
स्वप्न में कर लो भले ही
 पर जरा इकरार कर लो
एक पल के ही लिये कर लो
 मगर तुम प्यार कर लो
कल गुलाबी खत हमारा
 तुमने खोला भी नहीं है
क्या समझ लूं अब इसे मैं
 तुमने कुछ बोला नहीं है
टूट कर चाहा है तुम को
 मुझ सा तुम किरदार कर लो
एक पल के ही लिये कर लो
 मगर तुम प्यार कर लो
मैं तुम्हीं पर गीत लिखूं
 तुम पढ़ो हर बार मुझको
तुम भले ही जीत जाओ
 हार है स्वीकार मुझको
प्रेम का गहरा समन्दर
 साथ आओ पार कर लो
एक पल के ही लिये कर लो
 मगर तुम प्यार कर लो