भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कह रहे हैं लोग कुछ लोगों को मैं बहला रहा हूँ / कुमार नयन
Kavita Kosh से
कह रहे हैं लोग कुछ लोगों को मैं बहला रहा हूँ
हम बदल सकते हैं दुनिया ये उन्हें समझा रहा हूँ।
जानता हूँ तुम मुझे इस बार भी दोगे सज़ाएं
जिसपे पाबंदी लगी है फिर ग़ज़ल वो गा रहा हूँ।
खुद को खुशकिस्मत कहूँ या तेरे कुत्तों की इनायत
मैं तिरी खूंख़्वार गलियों से सलामत जा रहा हूँ।
अस्लहे अपनी हिफाज़त मव दिखाकर मेरे भाई
तुम भले इतराओ लेकिन मैं बहुत शरमा रहा हूँ।
मेरे बच्चों को न देना नींद आने की दवाएं
मैं उन्हें परियों के किस्से फिर सुनाने आ रहा हूँ।
तुम न बहरे हो न सोये हो तो क्यों सुनते नहीं हो
एक मुद्दत से तुम्हारे कान में चिल्ला रहा हूँ।
मेरे मुंह से मैं नहीं अब ये ज़माना बोलता है
सोचकर अंजाम उसका माँ क़सम घबरा रहा हूँ।