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क़दम न रख मिरी चश्म-ए-पुर-आब के घर में / शाह 'नसीर'
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क़दम न रख मिरी चश्म-ए-पुर-आब के घर में
भरा है मौज का तूफ़ाँ हबाब के घर में
कहे है देख के वो अक्स-ए-रूख़ ब-साग़र-ए-मय
नुज़ूल-ए-माह हुआ आफ़्ताब के घर में
मुदाम रिंद करें क्यूँ न आस्ताँ-बोसी
हरम है शैख़-ए-मशीख़त-मआब के घर में
हमारे दिल में कहाँ आबले हैं ऐ साक़ी
चुने हुए हैं ये शीशे शराब के घर में
तड़प को देख मिरे दिल की बर्क़-ए-आतिश-बार
ख़जिल हो छुप गई आख़िर सहाब के घर में
दिला न क्यूँके करूँ इख़्तिलात की बातें
हिजाब क्या है अब उस बे-हिजाब के घर में
‘नसीर’ देख तो क्या जलवा-ए-ख़ुदाई है
हमारे उस बुत-ए-ख़ाना-ख़राब के घर में