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क़दम बढ़ाते चले चलो! / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

क़दम बढ़ाते चले चलो!
हँसते गाते चले चलो!
जीवन की राहों में सब पर प्यार लुटाते चले चलो!

दुनिया में हर एक रात पूनम की रात नहीं होती,
धरती पर भी सावन की हरदम बरसात नहीं होती,
स्वाति-बूंद के लिए पपीहा तरस-तरस रह जाता है,
बादल की हर बूंद उसे, सुख की सौगात नहीं होती।
तुम अलसाए अधरों की जिर प्यास बुझाते चले चलों।

हँसते गाते चले चलो!
जीवन की राहों में सब पर प्यार लुटाते चले चलो!

कहीं समाती ख़ुशी न मन में, सीने में हैं घाव कहीं,
कहीं मृत्यु का आवाहन है, जीने के हैं चाव कहीं,
जकड़ा है सारे समाज को इतनी घोर विषमता ने,
सुख के सब सामान कहीं पर दुख से भरे अभाव कहीं।
दीवारें सब भेद-भाव की ध्वस्त बनाते चले चलो!

हँसते गाते चले चलो!
जीवन की राहों में सब पर प्यार लुटाते चले चलो!

धधक रही आतंकवाद की क़दम-क़दम पर ज्वाला है,
मानवता के तन को जिसने क्षत-विक्षत कर डाला है,
दौलत के मद में अंधा हो महल खड़ा छाती ताने,
पीना पड़ता हर कुटिया को बेबस विष का प्याला है।
तुम नफ़रत की नागफनी को काट गिराते चले चलो!

हँसते गाते चले चलो!
जीवन की राहों में सब पर प्यार लुटाते चले चलो!

आँगन-आँगन में सूनापन, द्वार-द्वार पर मातम है,
गली-गली में है अँधियारा, डगर-डगर ग़म ही ग़म है,
हर पनघट की चहल-पहल को निगल लिया ख़ामोशी ने,
हर मन की बगिया में घुस बैठा पतझर का मौसम है।
तुम उदास चेहरों पर नव-मुस्कान सजाते चले चलो!

हँसते गाते चले चलो!
जीवन की राहों में सब पर प्यार लुटाते चले चलो!

चौपालों पर गायन-वादन, झूले हों अमराई में,
गीत मिलन के गूंज उठें फिर पावस की पुरवाई में,
ऊँच-नीच की बातों का अस्तित्व नहीं रहने पाए,
फ़र्क न कोई रहे झोंपड़ी-महलों की ऊँचाई में।
पथ के सब काँटे बुहार कर सुमन बिछाते चले चलो!

हँसते गाते चले चलो!
जीवन की राहों में सब पर प्यार लुटाते चले चलो!