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क़ब्र पर बाए-ए-फ़ना आइएगा / वज़ीर अली 'सबा' लखनवी
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क़ब्र पर बाए-ए-फ़ना आइएगा
बे-महल पाँव न फैलाइएगा
लाख हो वस्ल का वादा लेकिन
वक़्त पर साफ़ निकल जाइएगा
न करें आप वफ़ा हम को क्या
बे-वफ़ा आप ही कहलाइएगा
क्या किया इश्क़ ने क्यूँ हज़रत-ए-दिल
हम ने कहते थे के पछताइएगा
आप चलते तो हैं अठखेलियों से
कोई आफ़त न कहीं लाइएगा
ऐ ‘सबा’ इश्क़-ए-परी-रूयाँ में
आदमियत से गुज़र जाइएगा