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क़ाबे से निकल के भी हैं इक क़ाबे के अन्दर / रमेश 'कँवल'

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क़ाबे से निकल के भी हैं इक क़ाबे के अंदर
सीने से लगाये हमें हैं काशी के मंदिर

ऐ बुत शिकनो !महवे-तवाफ़1 आज हो क्यों कर
जब संग2 था इकरोज़ वो हंसता फ़ने-आज़र3

आमादा-ए-हक़ गोर्इ4 न कर दे ये तगाफ़़ुल5
ऐसान हो बन जायें तेरी राह का पत्थर

बरसो जो बियाबां6 पे तो हो ज़िक्रे-इनायत7
मोहताजे-करम8 तो नहीं लहराते समन्दर

आ जा भी कि बरसात के अब आख़िरी दिन हैं
आंखों में लरज़ते हैं तेरे वस्ल9 के मंज़र10

करते है‘कंवल’जो तेरी मिदहत11 तेरे मुंह पर
वो लोग चुभोते हैं तेरी पीठ में खंज़र


1. परिक्रमा में मग्न 2. पत्थर 3. एक मूर्तितराश का नाम
4. सत्य कहने को तत्पर 5. उपेक्षा 6. रेगिस्तान 7. अनुग्रह की चर्चा
8. कृपापात्र 9. मिलन-संयोग 10. दृश्य 11. प्रशंसा।