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क़ासिद बना कबूतर बैठा मुँडेर पर / रंजना वर्मा
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क़ासिद बना कबूतर बैठा मुँडेर पर
खुश हो के नाजनीं ने देखा मुँडेर पर
दिल से जो दुआ निकली अरमान बन गयी
जी चाहता है कर लूँ सजदा मुँडेर पर
मुखड़ा न चाँद जैसा आँखें न कटारी
होने लगा है फिर भी चर्चा मुँडेर पर
पैगाम है ये लाया मिलने को चली आ
फिर चाँद आसमाँ का उतरा मुँडेर पर
होती निगाह में जो सच की कहीं गुज़र
हो जाय कोई दिलवर पैदा मुँडेर पर
पैगाम मुहब्बत का लाये जो यार की
सोने से तेरी चोंच दूँ मढ़ा मुँडेर पर
तपता रहा है सूरज गर्मी बहुत लगी
बादल घिरा है आज जो छाया मुँडेर पर