भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़िस्सागो / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
एक बार ऐसा हुआ
कहकर एक बार जब वह रूका
तो ऐसा हुआ कि उसे कुछ भी याद नहीं आया
अभी इतने क़िस्से थे बताने को
कि गुज़र जानी थीं हज़ार रातें जब वह रूका-
वह खोजता रहा रेगिस्तान, जंगल,
समय और आकाश के भीतर, वह खोजता रहा
और बाहर बैठे रह गए सुनने वाले बहुत सारे लोग
फिर ऐसा हुआ एक बार कि बहुत सारे लोग
मदद को चले गए उसके पीछे उसके भूलने की जगहों पर
और भूल गए क़िस्सागो का चेहरा
अपने ग्रह आकाश और स्मरण समेत
खो गए सारे लोग, एक भूले हुए क़िस्से की ख़ातिर
फिर बाहर भूल गए लोग यह सारा क़िस्सा
ऐसा हुआ एक बार ।