भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़िस्सा-ए-मुख़्तसर / अविनाश मिश्र
Kavita Kosh से
तुम मुझे मिलीं
मैं यह कहता हूँ कि ज़िन्दगी मिली
तुम कभी कुछ नहीं कहतीं कि तुम्हें क्या मिला