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क़िस्सा-ए-मुख़्तसर / अविनाश मिश्र

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तुम मुझे मिलीं
मैं यह कहता हूँ कि ज़िन्दगी मिली
तुम कभी कुछ नहीं कहतीं कि तुम्हें क्या मिला