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काँचे काँचे कलियन पर भँवरा लोभइलें / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
काँचे काँचे कलियन पर भँवरा लोभइलें मोर संवरिया रे
घुरूमी घुरूमी रस लेस। मोरा सँवरिया रे।
मदभरी अँखिया के जुलुमी नजरिया मोर सँवरिया रे
जुलुमी बा घुंघुरवारे बाल। मोरा सँवरिया रे।
हम के लोभवले स्याम तोहरी सुरतिया मोर सँवरिया रे।
जागते भइल भिनुसार। मोर सँवरिया रे।
कहत महेन्दर स्याम मोहेले परानवाँ मोर सँवरिया रे
नेहिया भइलें जीव के काल। मोर सँवरिया रे।