भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कांदा / असंगघोष
Kavita Kosh से
मक्के की रोटी
हम दोनों ने खाई
मैंने कांदे से
मक्केक की रोटी खाई
तुमने घी में तली
मक्के की रोटी
सरसों के साग के साथ
शौक से खाई
वही कांदा
जो तुम्हारे लिए
सलाद का प्याज था
मेरे लिए
साग भी है
सब्जी भी
चिकन
मटन
मटर पनीर और
सब कुछ
वो भी
जिनका नाम नामालूम
वो मेरा कांदा ही है
तुम नहीं खा सकोगे
सूखी रोटी इसके साथ
तुम्हारा मुँह बसाने लगेगा