भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कांधे पर ढो रहा हूँ मैं लाश अपने गाँव की / संदीप शिवाजीराव जगदाले / प्रकाश भातम्ब्रेकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक

मैंने एक गाँव को दम तोड़ते देखा है
मुर्दा बने एक गाँव से
जीते जी बाहर निकल आया हूँ मैं

नक़्शे पर बनी सर्पिल नीली रेखा
जो कभी गोदावरी थी
मेरे गाँव का जल-जीवन…
उस पर खींची गई आड़ी रेखा
जो पहाडी दीवार बन खड़ी हो गई
तो अब गाँव की साँस घुटने लगी है
आप पिछले किसी भी सफ़हे पर ग़ौर कीजिए
उस दिन देर रात लाल क़िले की प्राचीर से
कबूतर छोड़े गए आसमान में
उसके बाद से ही
नदी किनारे बसे गाँवों पर
गाज गिरना शुरू हुआ

मिट्टी से हर तरह सराबोर होकर
उसकी सोंधी महक को
बरक़रार रखने की जद्दोजहद करता रहा मैं
अपने निवाले में से
ढोंर-डांगर, पँछी-परिन्दे, कीड़े-मकोड़ों के लिए
दाना-पानी का हिस्सा बचाता रहा
भीषण अकाल के दौर में भी
मुट्ठी-बुकोटा भर दाल-आटा
भूखों-वंचितों को मयस्सर कराता रहा

पसीने की कमाई को सोना
और मुफ़्त की पूँजी को लीद मानता रहा ।

दो

तन-बदन से चिपटी-लिपटी धोरारि मिट्टी समेत
ज़िन्दा रहने की कशमकश पर
पूरा यक़ीन था मुझे

मुझे पूरा यक़ीन था कि
रात की स्याही यक़ीनन मौत को शह देगी
और गाँव के चूल्हों में आग
बरक़रार रहेगी
किन्तु मेरे दादा-परदादा ने
और उनसे भी पूर्व-पीढ़ियों के फ़र्माबरदारों ने
ईंट-रोड़े का जुगाड़ कर
बसाया था जो गाँव
उसने एक आड़ी रेखा की हद में
दमघोंटू सिसकियों-कराहों के साथ
दम तोड़ दिया
लट्टुओं की लक़दक़ रोशनी की गवाही से
मन्द-शीतल फ़व्वारों की फुहार में
कइयों को भीगते-मदमाते
देखा है मैंने
तब से सावन-भादों बने मेरे नैन
अभी भी झर रहे हैं

अब दुनिया के किसी भी नुक्कड़-कोने में
अपनी जड़ों की खोजबीन में जुटा
पाएँगे आप मुझे
ऊसर-बंजर पर बनी टपरी तले
पुनर्वसित ‘ड्रीम सिटी’ की मरीचिका में
पुनर्जीवित होने के झूठे सपने सँजोते हुए
गाँव ने भले ही दम तोड़ दिया हो
किन्तु वहाँ के बाशिन्दे
भला, इतनी आसानी से
कैसे मिटने देंगे अपनी हस्ती को !

तीन

यानी मुझे आप कहीं भी
फन्दे में झूलता हुआ पाएँगे

क्या आपको लगता है
कि मैं ज़िन्दा हूँ?
महज़ धौंकनी चलती रहने से
इनसान ज़िन्दा कहलाएगा ?
ताउम्र उसे एक जीती-जागती
लाश को ढोना पड़ेगा

ऐसा ही एक इनसान हूँ मैं
अपने जले-झुलसे कांधे पर
अपने ही गाँव की लाश ढो रहा हूँ
डगर-डगर…

मूल मराठी से अनुवाद : प्रकाश भातम्ब्रेकर