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काकी /रवीन्द्र चन्द्र घोष

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दुबली-पतली काकी तोहें कैन्हेें एन्होॅ
एत्तेॅ सुखोॅ मेॅ काकी तोहें कैैन्हें एन्होॅ
चार पुतोहू पोता-पोती एत्तेॅ-एत्तेॅ
दाय-नौकर,लावो-लश्कर एत्तेॅ-एत्तेॅ
सब तेॅ ई सब करलोॅ काकी तोहरे छेकौं
बाग-बगीचा जत्तेॅ भी छौं तोहरे छेकौं
सीधी-सीधी बनलोॅ रहला मेॅ फायदा छै
कड़क रहै के आवेॅ कहाँ कायदा छै
ई मन्तर तों अपनावोॅ तेॅ सब कुछ मिलतौं
यही राह पर चलोॅ तोहें सब कुछ फलतौं
उदाहरण तेॅ ई सामने छौं देखी लेॅ हिनका
एत्तेॅ उमरोॅ मेॅ कोठी छै देखोॅ हिनका