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कागज़ की नाव / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
यह कागज की नाव हमारी,
यह टब बना समुंदर भारी।
मुन्नी चुन्नी चम्पा भोला,
मोहन सोहन श्याम मुरारी।
इस सागर के खड़े किनारे,
हम सब संगी साथी प्यारे।
अपनी नाव चलाते हैं हम,
इधर न आ तू तेज हवा रे ।
हम सब भारत माँ चाकर,
हम सब वीर साहसी सुंदर।
बन्धन मुक्त करेंगे जग को,
सचमुच के जलयान चलाकर।