Last modified on 25 दिसम्बर 2014, at 20:53

कागज कौ तौ भन्ना भर दऔ / महेश कटारे सुगम

कागज कौ तौ भन्ना भर दऔ ।
लिख-लिख कें पोथन्ना धर दऔ ।

चार किताबें छपवावे में,
सौनौं चांदी गानें धर दऔ ।

अब जो हुइयै देखी जैहै,
अपनौ काम तौ पूरौ कर दऔ ।

छपवे की गुंजाईश नइयाँ,
सो लिखवौ बन्दई सौ कर दऔ ।

देख डायरीँ घर के कत हैं,
कूरा सें घर घूरौ कर दऔ ।