भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कागज कौ तौ भन्ना भर दऔ / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
कागज कौ तौ भन्ना भर दऔ ।
लिख-लिख कें पोथन्ना धर दऔ ।
चार किताबें छपवावे में,
सौनौं चांदी गानें धर दऔ ।
अब जो हुइयै देखी जैहै,
अपनौ काम तौ पूरौ कर दऔ ।
छपवे की गुंजाईश नइयाँ,
सो लिखवौ बन्दई सौ कर दऔ ।
देख डायरीँ घर के कत हैं,
कूरा सें घर घूरौ कर दऔ ।