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कागज में लिखे लोग लेते हैं साँस / केदारनाथ अग्रवाल
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कट गए बाँस
और मिट गई फाँस
बन गए कागज का बन गया देश
कागज में लिखे लोग लेते हैं साँस
रचनाकाल: २४-०३-१९६९