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काग़ज़ / नवीन दवे मनावत
Kavita Kosh से
मैंने काग़ज़ पर प्रेम लिखा
आवाज आई
स्वीकार है
फिर मैने वाट्सअप आदि पर
लिखा
तो इस बार आवाज नहीं आई
क्योंकि वह शब्द कॉपी पोस्ट हो गया
और
करने लगा बलात्कार अन्य शब्दों से
भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से
उस शब्द ने निर्ममता का
बाना पहना
और बैठ गया
अनेक सोशल मिडिया के सिर पर
और
फिर क्या हुआ!
लड़खड़ाकर गिर पड़ा
आखिर वह उन्ही
कागज पर
जिसमें वजूद था उसका
यथार्थ में प्रेम
कागज पर ही लिखा जाता है
जहाँ किमत हो आंसूओं की
मर्म हो पीड़ा का
और
अहसास हो रूह की बात का