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कात्या उषाकोवा के लिए / अलेक्सान्दर पूश्किन / अनिल जनविजय

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पहले, बहुत पहले, प्राचीन काल में कभी ऐसा होता था 
आ जाती थी डायन किसी पर या कोई भूत को ढोता था
इन शैतानों को भगाने के लिए लोग यह मन्त्र-सा पढ़ते थे
’आमीन! आमीन! तू हो जा चूरा!’ इस तरह भूतों से लड़ते थे

मगर अब इन दिनों में हमारे बन्द हो गए आने सब भूत-शैतान
कहाँ चले गए सारे के सारे, बात यह जाने, बस, भगवान
पर तुम ओ सुन्दरी ! मेरी चुड़ैल हो, मेधावी हो, प्रतिभावान
आती हो जब मेरे सामने, अपना सुन्दर चेहरा लिए ललाम

देखूँ तेरी जब कजरी आँखें और लहराते वो घुँघराले बाल 
सुनूँ ध्यान से तेरी सब बातें, मधुर वाणी, मीठा सुर-ताल
तेरा सम्भाषण प्रफुल्लित, जीवन्त, हँसमुख, तेरी बोलचाल
मंत्रमुग्ध हूँ विमोहित तुझसे, देख, दहल रहा है मेरा भाल

थरथरा रहा हूँ, काँप रहा हूँ, दहक रहा है मन मेरा
हदय में उत्कट स्वप्न है, सम्मोहित तेरे रूप से पूरा
कैसे बचूँ मैं तुझ चुड़ैल से, तू जादूगरनी, ओ पिशाचिनी
यही कह पाऊँ बचाव में आमीन ! आमीन ! तू हो जा चूरा !

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
          Александр Пушкин
             Ек. H. Ушаковой

Когда, бывало, в старину
     Являлся дух иль привиденье,
     То прогоняло сатану
     Простое это изреченье:

  "Аминь, аминь, рассыпься!" В наши дни
Гораздо менее бесов и привидений;
Бог ведает, куда девалися они.
     Но ты, мой злой иль добрый гений,

     Когда я вижу пред собой
Твой профиль и глаза, и кудри золотые,
     Когда я слышу голос твой
     И речи резвые, живые -

     Я очарован, я горю
     И содрогаюсь пред тобою,
     И сердцу, полному мечтою,
"Аминь, аминь, рассыпься!" - говорю.

1827 г.