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कादम्बरी / पृष्ठ 119 / दामोदर झा

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4.
भेटल काज महाश्वेतासँ भेट करै लय जायब
अयबे करता कुमर ततय लगले जीवन फल पायब।
एहि ठाँ रहब विवाहो हयते किन्तु समय बड़ गरतै
ओतय महाश्वेता गान्धर्वक रीति सकल विधि करतै॥

5.
राति सोहागक ततहि मनायब आश्रमकेर गुफामे
दुइ तिन राति विवाहक पहिनहि करब विलास नफामे।
सोचि कयल तैयारी ई किछु सखी चलय से कहलनि
मदलेखा बड़ चतुर विवाहक सब किछु संगमे रखलनि॥

6.
कादम्बरी पत्रलेखा केर कर धय चललि हुलासे
केयूरक संग वस्तु जात छल चलय सखी दश पासे।
मदलेखासँ गप्प पसारल मन नहि हर्ष अँटै छल
मारग पार करथि झटपट गति कुमरक नाम रटब छल॥

7.
गै मदलेखा कहय पत्रलेखा ओ निश्चित अओता
नहि विश्वास हृदयमे अछि ओ हमर दशा मन लओता।
जँ कदापि ओ अओता तँ हम नहि हुनका दिशि तकबनि
कतबो ओ किछ कहता हम तँ बहिर जकाँ नहि सुनबनि॥

8.
हुनकर शठताके देखार कय तो ही उलहन दीहनु
हम तँ बजबनि नहिजे घुरि उज्जैन जाइलय कहिहनु।
ई सब गप्प करथि चलितो छलि दहिन आँखि फड़कै छल
काटल बाट सियार वाम असगुनसँ हिय धड़कै छल॥